उँचाई

UNCHAYI

  • A play Seagull theatre
  • Original story EROSTRATUS by Jean Paul Sartre
  • Dramatization and direction Baharul Islam
  • Language: Hindi
  • Duration of the play 1 hour 10 minutes

About the Play
UNCHAYI (Erostratus)
A story about a misanthropic man who resolves to follow the path of Herostratus and make history by means of an evil deed—in this case, by killing six random people (one for each bullet in his revolver). The man is exhilarated by the sense of power he receives when carrying his revolver on the streets within his pocket. “But I no longer drew assurance from that [the revolver], it was from myself: I was a being like a revolver, a torpedo or a bomb.” Sartre gives the reader an insightful account about how a man’s nature changes with the objects of his possession, but the object itself is unable to change the internal man, as seen in the conclusion.

ON STAGE
Bhageerathi bai, Baharul Islam, Jureen Mahanta, Ankit Goswami, Monika, Aftab and Gauranga

OFF STAGE

  • Story: Jean Paul Sartre
  • Set: Debojit Borthakur
  • Property: Prasanta Kalita
  • Light: Bhageerathi
  • Music: Gauranga Narayan Dev
  • Dramatization, Design and direction: Baharul Islam

DIRECTOR NOTE
During the Pandemic I have read this story and found it to be very interesting. The modern, literary Erostratus is isolated, a loner. The protagonist is just like a wolf, who is alone after being driven away from the pack operating individually. Erostratus remains idiosyncratic, highly individualistic when it comes to his relationship with society and humankind and his personal hatred towards all women and men. Significantly Satre emphasizes on Erostratus’s lack of communication, relationships, community and networks. His act remains conned to his individual story and experience of the world: that of the madman in search of negative notoriety.


ऊंचाई

  • मूल कहानी : इरोस्ट्रेटस – ज्यां पाल सार्त्र
  • नाट्यरूपण एवं निर्देशन : बहारूल इस्लाम
  • भाषा: हिंदी
  • नाटक की अवधि : 1 घंटा 10 मिनट

नाटक के बारे में
यह कहानी है एक ऐसे मानवद्वेषी व्यक्ति के बारे में जो हेरोस्ट्रेटस के मार्ग पर चलने और एक बुरे काम के माध्यम से इतिहास बनाने का संकल्प लेता है और इस मामले में एक पर एक छह लोगों को मार देता हैं (रिवॉल्वर के प्रत्येक गोली के लिए एक आदमी) वह आदमी अपनी जेब में रिवॉल्वर रख लेने से खुद में एक शक्ति और ख़ुशी महसूस करने लगता है। लेकिन उससे अब उस रिवॉल्वर से आश्वासन नहीं मिलता, वह खुद को एक रिवॉल्वर, एक टारपीडो और बॉम्ब समझने लगता हैं। सार्त्र पाठक को एक अंतर्दृष्टिपूर्ण विवरण देते हैं कि कैसे एक व्यक्ति और उसका स्वभाव उसके कब्जे की वस्तुओं के साथ बदलता है, लेकिन वस्तु स्वयं आंतरिक मनुष्य को बदलने में असमर्थ रहती है, जैसा कि सारांश में देखा गया है।

मंच पर  
भागीरथी बाई, बहरुल इस्लाम, जूरीन महंत, अंकित गोस्वामी, मोनिका और आफताब

मंच परे

  • कहानी: ज्यां पाल सार्त्र
  • मंच परिकल्पना : देबोजीत बोरठाकुर
  • मंच – सामग्री : प्रशांत कलिता
  • प्रकाश : भागीरथी
  • संगीत : गौरांग नारायण देव
  • नाट्य-रूपांतरण, परिकल्पना और निर्देशन: बहारुल इस्लाम

निर्देशकीय
महामारी के दौरान मैंने यह कहानी पढ़ी और मुझे यह बहुत दिलचस्प लगी। इस कहानी का मुख्य पात्र बिल्कुल एक भेड़िये की तरह है, जो अलग-अलग काम कर रहे झुंड से भगाए जाने के बाद अकेला है। जब समाज और मानव जाति के साथ उसके सम्बन्धों और सभी महिलाओं से उसकी व्यक्तिगत नफ़रत की बात आती है तो वह विशिष्ट स्वभाव का, अत्यधिक व्यक्तिवादी रहता है। जब समाज और मानव जाति के साथ उसके सम्बन्धों और उनके प्रति अपनी व्यक्तिगत नफ़रत की बात आती है तो वह विशिष्ट स्वभाव का, अत्यधिक व्यक्तिवादी ही बना रहता है। गौरतलब है, सात्रे एरोस्ट्रेटस के संचार, रिश्तों, समुदाय और पहुंच की कमी पर जोर देते हैं। उनका कार्य उनकी व्यक्तिगत कहानी और दुनिया के अनुभव से जुड़ा हुआ है: नकारात्मक कुख्याति की तलाश में पागल व्यक्ति की कहानी।

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