चांद तन्हा आसमां तन्हा
अदाकारा और शायरा मीना कुमारी का जीवन और रचनाकर्म पर आधारित नाटक
प्रस्तुति – दस्तक, पटना
विदुषी रत्नम का एकल अभिनय
आलेख, परिकल्पना और निर्देशन – पुंज प्रकाश
नाट्य दल के बारे में
दस्तक की स्थापना सन 2 दिसम्बर 2002 को पटना में हुई। तब से अब तक मेरे सपने वापस करो (संजय कुंदन की कहानी), गुजरात (गुजरात दंगे पर विभिन्न कवियों की कविताओं पर आधारित नाटक), करप्शन जिंदाबाद, हाय सपना रे (मेगुअल द सर्वानते के विश्वप्रसिद्ध उपन्यास Don Quixote पर आधारित), राम सजीवन की प्रेम कथा (उदय प्रकाश की कहानी), एक लड़की पांच दीवाने (रचनाकार – हरिशंकर परसाई), एक और दुर्घटना (नाटककार – दरियो फ़ो), पटकथा (कवि – धूमिल), भूख, किराएदार (दोस्त्रोयोव्सकी की कहानी रजत रातें पर आधारित), एक था गधा (नाटककार – शरद जोशी), आषाढ़ का एक दिन (नाटककार – मोहन राकेश), जामुन का पेड़, पलायन, तीसरी क़सम उर्फ़ मारे गए गुलफ़ाम, निठल्ले की डायरी आदि नाटकों का मंचन देश के अलग-अलग शहरों, गांव, कस्बों के आयोजित प्रमुख नाट्योत्सवों में किया गया है।
दस्तक का उद्देश्य नाटकों के मंचन के साथ ही साथ कलाकारों के शारीरिक, बौधिक व कलात्मक स्तर को परिष्कृत और प्रशिक्षित करना और नाट्य-प्रेमियों के समक्ष समसामयिक, प्रायोगिक और सार्थक रचनाओं की नाट्य प्रस्तुतियों और आयोजनों को उपस्थित करना है।
निर्देशक के बारे में
पुंज प्रकाश, सन 1994 से रंगमंच के क्षेत्र में लगातार सक्रिय अभिनेता, निर्देशक, लेखक, अभिनय प्रशिक्षक व प्रकाश परिकल्पक हैं। मगध विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में ऑनर्स। नाट्यदल “दस्तक” के संस्थापक सदस्य। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली के सत्र 2004 – 07 में अभिनय विषय में विशेषज्ञता। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल में सन 2007-12 तक बतौर अभिनेता कार्यरत। अब तक देश के कई प्रतिष्ठित अभिनेताओं, रंगकर्मियों के साथ कार्य। एक और दुर्घटना, मरणोपरांत, एक था गधा, अंधेर नगरी, ये आदमी ये चूहे, मेरे सपने वापस करो, गुजरात, हाय सपना रे, लीला नंदलाल की, राम सजीवन की प्रेमकथा, पॉल गोमरा का स्कूटर, चरणदास चोर, जो रात हमने गुजारी मरके, पटकथा, भूख, किराएदार, एक था गधा, आषाढ़ का एक दिन, पलायन, मारे गए गुलफ़ाम और तीसरी क़सम, निठल्ले की डायरी आदि नाट्य प्रस्तुतियों का निर्देशन तथा कई नाटकों की प्रकाश परिकल्पना, रूप सज्जा एवं संगीत निर्देशन। कृशन चंदर के उपन्यास दादर पुल के बच्चे, महाश्वेता देवी का उपन्यास बनिया बहू, फणीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास परती परिकथा एवं कहानी तीसरी कसम व रसप्रिया पर आधारित नाटक मारे गए गुलफ़ाम उर्फ़ तीसरी क़सम, भिखारी ठाकुर के जीवन व रचनाकर्म पर आधारित नाटक नटमेठिया, हरिशंकर परसाई की रचना पर आधारित निठल्ले की डायरी सहित मौलिक नाटक भूख और विंडो उर्फ़ खिड़की जो बंद रहती है तथा पलायन का लेखन। देश के विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रंगमंच, फिल्म व अन्य सामाजिक विषयों पर लेखों के प्रकाशन के साथ ही साथ कहानियों और कविताओं का लेखन व प्रकाशन।
नाटक के बारे में
प्रसिद्ध चरित्रों की बारे में ऐसा भ्रम होना कि “हम इन्हें अच्छे से जानते हैं” एक लोकप्रिय भ्रम है और इसमें कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है; लेकिन कहते हैं न कि जैसे बिना गहरे पानी में पैठे मोती हासिल नहीं हो सकता, ठीक उसी प्रकार बिना सही दिशा में गहन अध्ययन के जानकारी का होना एक भ्रम मात्र है। फिर यह भी तो सत्य है कि प्रसिद्ध चरित्रों के बारे में सत्य से ज़्यादा गल्प हवाओं में तैर रहा होता है और जब बात सिनेमा जैसी अति-लोकप्रिय विधा की हो तब यहां सत्य तक पहुंचने की चुनौती और भी ज़्यादा बढ़ जाती है क्योंकि पल्प फिक्शन यहां के कण-कण में व्याप्त है।
एक अभिनेत्री, एक शायरा और सबसे बढ़कर एक इंसान के रूप में मीना कुमारी पर काम करते हुए उन्हें यथासंभव समझने का प्रयत्न किया है और हमने पूरी चेष्टा की है कि हम बने-बनाए, लोकप्रिय और ज्ञात छवि से इतर जाकर भी उन्हें समझ सकें। लेकिन इस बात से भी हम इनकार नहीं करते कि संभव हो कि सत्य इससे परे भी हो और फिर इस बात से कोई कैसे इनकार कर सकता है कि इंसान समझता भी अपनी समझ से ही है।
इस नाटक में मीना कुमार का जीवन, उनका रचनाकर्म के साथ ही साथ उनकी फ़िल्मों के प्रसंग और फ़िल्मी गानों का इस्तेमाल है, जो हमारी दृष्टि को उस समय में ले जाने और कई स्थान पर घटनाक्रम को परिभाषित करने में सहायक सिद्ध होती है। अब चुकी कोई भी प्रस्तुति आज के दर्शकों के लिए होती है इसलिए इसकी प्रस्तुतीकरण में आधुनिक संवेदनशीलता का भी यथा-संभव ध्यान रखा गया है।
किसी भी नाट्य प्रस्तुति का उद्देश्य इतिहास की पुनरावृत्ति कभी नहीं होती बल्कि यहां एतिहासिक चरित्रों के माध्यम से दरअसल हम वर्तमान को ही संबोधित और परिभाषित कर रहे होते हैं। मीना के मार्फ़त भी हमारी चेष्टा यही है. नाटक अपने आप बोलता है, इसलिए प्रस्तुति देखिए और ख़ुद तय कीजिए।
निर्देशकीय
किसी भी विधा में लम्बे समय तक कार्यरत रहते हुए दो तरह के कार्य करने के लिए हम अभिशप्त हो जाते हैं। पहला, वह काम जो दर्शकों के मनोरंजन की भूख को शांत कर सके और दूसरा वैसा काम जिसमें भरपूर जोखिम हो और बतौर एक चिन्तनशील कलाकार आप पूरी शिद्दत के साथ इस जोख़िम को इसलिए उठाना चाहते हैं क्योंकि प्रयोग के बिना किसी भी कला का विकास होना संभव नहीं है। पहले तरह के कार्य में लोकप्रिय तत्वों की प्रधानता और बने बनाए रास्ते का अनुपालन होता है, वहीं दूसरे तरह के कार्य में प्रयोगधर्मिता का साथ होता है। प्रयोगधर्मी होना किसी बीहड़ बियाबान में विचरण करने के सामान है। इस बीहड़ में क्या हासिल होगा, हासिल होगा भी कि नहीं इसका ठीक-ठीक अनुमान किसी को नहीं होता; न इसे लिखनेवाले को, न परिकल्पित और निर्देशित करनेवाले को, न अभिनीत करनेवाले को और ना ही देखने वाले को ही. यह हर रूप में एक ऐसा काम होता है जो हम सब की सोच, समझ, ज्ञान, सीखे-समझे, देखे-सुने और महसूस किए की भीषण परीक्षा लेता है। यहां सारे के सारे चिंतन मौलिकता के साथ ही साथ नवीन व्याख्या की मांग करते हुए अर्थवान प्रस्तुति की उम्मीद करते हैं; और ऐसा करना किसी भी स्तर पर कभी भी आसान नहीं होता।
प्रस्तुत नाटक इन्हीं सब उधेड़बुन का परिणाम है इसलिए यह किसी भी बने बनाए रास्ते पर विचरण नहीं करती बल्कि लेखन, परिकल्पना, निर्देशन, अभिनय के साथ ही साथ सारी विधा में नवीनता का समावेश करती है. निश्चित ही इसे देखने, सुनने, समझने और महसूस करने के लिए शायद थोड़ी तैयारी दर्शकों को भी करना पड़े. संभव हो कि इसे एक से ज़्यादा बार देखना पड़े और यह भी संभव है कि इसे देखने के बाद ख़ूब चिंतन-मनन भी करना पड़े और बीहड़ता को अपने भीतर उतारने की चुनौती भी प्रस्तुत करे।
जैसे कुछ नाटक ऐसा होता है जिसे हम अपने जीवन में कम से कम एक बार तो अवश्य की खेलना चाहते हैं ठीक उसी प्रकार कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जिन्हें आप मंच पर उपस्थित करना चाहते हैं; मीना कुमारी मेरे लिए एक ऐसी ही व्यक्तित्व हैं। यह प्रस्तुति एक अभिनेत्री, एक शायरा की रचनात्मक जीवनयात्रा तो है लेकिन उससे भी ज़्यादा उसकी व्याख्या है. वैसे भी कोई भी नाट्य-प्रस्तुत अगर वो सही रूप से तैयार की गई है तो वो दरअसल आलेख की व्याख्या होती है उसका जैसे का तैसा प्रस्तुतीकरण नहीं. बहरहाल, प्रस्तुति आपके समक्ष है, देखें, सुनें, समझें और महसूस करें!
कलाकार और श्रेय
मंच पर
मीना – विदुषी रत्नम
मंच परे
संगीत संचालन और नृत्य परिकल्पना – प्रिंस कुमार
वस्त्र परिकल्पना – अन्नु प्रिया
मंच सामग्री – मोहित
प्रस्तुति – दस्तक, पटना
मंच, प्रकाश, आलेख, परिकल्पना और निर्देशन – पुंज प्रकाश
Chand Tanha Aasman Tanha
A play based on the life and works of actress and poetess Meena Kumari
Presented by – Dastak, Patna
Solo performance by Vidushee Ratnam
Script, concept and direction – Punj Prakash
About The Group
Dastak was established on 2 December 2002 in Patna. From then till now Mere Sapne Vashpa Karo (story by Sanjay Kundan), Gujarat (a play based on the poems of various poets on the Gujarat riots), Corruption Zindabad, Hi Sapna Re (based on the world-famous novel Don Quixote by Miguel de Cervantes), Ram Sajeevan. Prem Katha (story by Uday Prakash), Ek Ladki Panch Deewane (writer – Harishankar Parsai), Accidental Death of an Anarchist (Playwright – Dario Fo), Screenplay (Poet – Dhumil), Bhookh, Kiraaedaar (based on Dostroyevsky’s story Rajat Raatein), Ek Tha Gadha (Playwright – Sharad Joshi), Ashadh Ka Ek Din (Playwright – Mohan Rakesh), Jamun Ka Ped, Palayan, Nithalle Ki Diary, Teesri Kasam urf Mare Gaye Gulfam etc plays were staged in different cities and villages of the country, has been performed in major drama festivals organized in the towns.
The objective of Dastak is to stage plays as well as to refine and train the physical, intellectual and artistic level of the artists and to present theatrical presentations and events of contemporary, experimental and meaningful creations to the theater lovers.
About The Director
Punj Prakash is an actor, director, writer, acting coach and lighting designer who has been continuously active in the field of theater since 1994. Honors in History from Magadh University. Founding member of the theater group “Dastak”. Specialization in Acting in the session 2004 – 07 at National School of Drama, New Delhi. Working as an actor in National School of Drama Theater from 2007-12. Till now, he has worked with many eminent actors and theater artists of the country. Accidental Death of an Anarchist, Marnoparant, Ek Tha Gadha, Andher Nagri, Ye Aadmi Ye choohe, Mere Sapna Wapas Karo, Gujarat, Hi Sapna Re, Leela Nandlal Ki, Ram Sajeevan Ki Prem Katha, Paul Gomra’s Scooter, Charandas Chor, Wo Raat Hamne Guzari Marke Direction of theatrical productions like Patkatha, Bhookh, Kiraaedaar, Ek Tha Gadha, Ashadh Ka Ek Din, Palayan, Mare Gaye Gulfaam and Teesri Kasam, Nithalle Ki Diary etc. and lighting concept, design and music direction of many plays. Krishan Chander’s novel Dadar Pul ke Bachche, Mahasweta Devi’s novel Baniya Bahu, Phanishwarnath Renu’s novel Parati Parikatha and story Teesri Kasam and plays based on Raspriya, plays based on Gulfam alias Teesri Kasam, Bhikhari Thakur’s life and works Natmethiya,. Writing the original plays Bhookh and Khidki jo Band Rahti Hai and Palayan. Writing and publishing of stories and poems along with publication of articles on theatre, film and other social topics in various prestigious newspapers and magazines of the country.
About The Play
The misconception that “we know them well” about famous characters is a popular misconception and there is nothing surprising in it, but it is said that just as pearls cannot be found without digging in deep water. Having such information without deep study in the right direction is just an illusion. Then it is also true that there is more fiction floating in the air about famous characters than truth and when it comes to a very popular genre like cinema, the challenge of reaching the truth increases even more because Pulp Fiction is Pervaded in every particle of.
While working on Meena Kumari as an actress, a poet and above all as a human being, we have tried to understand her as much as possible and we have tried our best to understand her beyond the ready-made, popular and known image. But we do not deny that it is possible that the truth may be beyond this and then how can anyone deny that man understands only through his own understanding.
In this play, Meena’s life, her creative work as well as references from her films and film songs are used, which helps in taking our vision to that time and defining the events at many places. Now since any presentation is for today’s audience, therefore modern sensibilities have also been taken care of as much as possible in its presentation.
The aim of any theatrical presentation is never to repeat history, rather here we are actually addressing and defining the present through historical characters. This is our endeavor through Meena also. The play speaks for itself, so watch the performance and decide for yourself.
Directorial
While working in any field for a long time, we are cursed to do two types of work. First, the work that can satisfy the hunger of the audience for entertainment and second, the work that involves a lot of risk and as a thoughtful artist, you want to take this risk with full intensity because without experimentation, the development of any art is not possible. In the first type of work, popular elements are dominant and the ready-made path is followed, while in the second type of work, experimentalism is accompanied. Being experimental is like wandering in a rugged wilderness. No one has a correct idea of what will be achieved in this wilderness, whether it will be achieved or not; neither the one who writes it, nor the one who conceptualizes and directs it, nor the one who acts in it, nor the one who watches it. In every form, it is such a work that puts all of us to a severe test of our thinking, understanding, knowledge, what we have learned, seen, heard and felt. All the thoughts here demand originality as well as a new interpretation and expect a meaningful presentation; and doing so is never easy at any level.
The play presented here is the result of all these contemplations, so it does not wander on any set path but incorporates novelty in all the genres along with writing, concept, direction, acting. Certainly, the audience may have to do some preparation to see, hear, understand and feel it. It is possible that it may have to be seen more than once and it is also possible that after seeing it, one may have to think and ponder a lot and it may also present a challenge to absorb the ruggedness within oneself.
Just as there are some plays that we definitely want to play at least once in our lives, similarly there are some personalities that you want to present on stage; Meena Kumari is one such personality for me. This presentation is the creative life journey of an actress, a poetess but more than that, it is her interpretation. Anyway, any theatrical performance, if it is prepared properly, is actually an interpretation of the script and not a literal presentation of it. Anyway, the performance is in front of you, see, listen, understand and feel it!
Cast and Credits
On stage
Meena – Vidushi Ratnam
Off stage
Music Direction and Choreography – Prince Kumar
Costumes Design – Annu Priya
Stage Material – Mohit
Presented by – Dastak, Patna
Stage, Lighting, Script, Design and Direction – Punj Prakash
Book Online – https://in.bookmyshow.com/plays/chand-tanha-aasman-tanha/ET00404066?webview=true