नाट्य दल के बारे में
दस्तक की स्थापना सन 2 दिसम्बर 2002 को पटना में हुई। तब से अब तक मेरे सपने वापस करो (कहानीकार – संजय कुंदन), गुजरात (गुजरात दंगे पर विभिन्न कवियों की कविताओं पर आधारित नाटक), करप्शन जिंदाबाद, हाय सपना रे (मेगुअल द सर्वानते के विश्वप्रसिद्ध उपन्यास Don Quixote पर आधारित), राम सजीवन की प्रेम कथा (कहानीकार – उदय प्रकाश), एक लड़की पांच दीवाने (रचनाकार – हरिशंकर परसाई), एक और दुर्घटना (नाटककार – दरियो फ़ो), पटकथा (कवि – धूमिल), भूख, किराएदार (दोस्त्रोयोव्सकी की कहानी रजत रातें पर आधारित), एक था गधा (नाटककार – शरद जोशी), आषाढ़ का एक दिन (नाटककार – मोहन राकेश), जामुन का पेड़, पलायन, निठल्ले की डायरी, तीसरी क़सम आदि नाटकों का मंचन देश के अलग-अलग शहरों, गांव, कस्बों के आयोजित प्रमुख नात्योत्सवों में किया गया है।
दस्तक का उद्देश्य नाटकों के मंचन के साथ ही साथ कलाकारों के शारीरिक, बौधिक व कलात्मक स्तर को परिष्कृत और प्रशिक्षित करना और नाट्यप्रेमियों के समक्ष समसामयिक, प्रायोगिक और सार्थक रचनाओं की नाट्य प्रस्तुति करना भी है।
कथासार
निठल्ला वह नहीं होता जो कोई काम नहीं करता बल्कि वह होता है जो अपने फ़ायदे के लिए काम नहीं करता। जो निःस्वार्थ दूसरों का भला करने का प्रण ले, ज़माने का चलन यह है कि ज़माना अब उसको निठल्ला मानता है. यहां भी एक निठल्ला है जो दूसरों का निःस्वार्थ भला करने का प्राण लेता है लेकिन या तो कोई उससे अपना भला करना नहीं चाहता या फिर वह चाहकर भी किसी का भला नहीं कर पाता। भला करने की यही इच्छा उसे एक से एक व्यक्ति, स्थिति, परिस्थिति से रूबरू करवाती है और वो इस नतीज़े पर पहुंचता है कि कोई भी इंसान किसी दूसरे का भला कर ही नहीं सकता। इस क्रम में एक से एक मज़ेदार चिंतन और हास्य-व्यंग की परिस्थितियां उत्पन्न होती रहती हैं।
निर्देशकीय
निठल्लापन एक दर्शन है, जिसको समझने की काबिलियत सबके भीतर नहीं होती है। इंसान अमूमन किसी भी प्रकार अपना फ़ायदा करने को ही काम मानता है और इसके अलावा जितनी भी चीज़ें हैं, उसे निठल्लापन। ऐसी मान्यता है कि जो चीज़ आपको व्यक्तिगत रूप से लाभ नहीं पहुंचती है, वो सब बेकार हैं और जो भी इस बेकारपन को अपनाता है वो दरअसल निठल्ला है। प्रस्तुत नाटक इसी लोभ, लाभ और निठल्लेपन के बीच विमर्श है। इस नाटक की प्रस्तुति तैयार करते समय हमने नाटक की प्रस्तुति में यथासंभव सादगी को अपनाने की चेष्टा की है ताकि इस प्रस्तुति में व्याप्त व्यंग बिना किसी बाहरी आवरण और तामझाम के आपके समक्ष उपस्थित हो सके। यहां दृश्य की भव्यता से ज़्यादा कथन और वाचन की महत्ता है, हम इस कथन और वचन को ही आप तक पहुंचने की चेष्टा में अपनी सार्थकता की तलाश करते हैं।
निर्देशक के बारे में
पुंज प्रकाश, सन 1994 से रंगमंच के क्षेत्र में लगातार सक्रिय अभिनेता, निर्देशक, लेखक, अभिनय प्रशिक्षक व प्रकाश परिकल्पक हैं। मगध विश्वविद्यालय से इतिहास विषय में ऑनर्स। नाट्यदल “दस्तक” के संस्थापक सदस्य। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नई दिल्ली के सत्र 2004 – 07 में अभिनय विषय में विशेषज्ञता। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय रंगमंडल में सन 2007-12 तक बतौर अभिनेता कार्यरत। अब तक देश के कई प्रतिष्ठित अभिनेताओं, रंगकर्मियों के साथ कार्य। एक और दुर्घटना, मरणोपरांत, एक था गधा, अंधेर नगरी, ये आदमी ये चूहे, मेरे सपने वापस करो, गुजरात, हाय सपना रे, लीला नंदलाल की, राम सजीवन की प्रेमकथा, पॉल गोमरा का स्कूटर, चरणदास चोर, जो रात हमने गुजारी मरके, पटकथा, भूख, किराएदार, एक था गधा, आषाढ़ का एक दिन, पलायन, मारे गए गुलफ़ाम और तीसरी क़सम, निठल्ले की डायरी आदि नाट्य प्रस्तुतियों का निर्देशन तथा कई नाटकों की प्रकाश परिकल्पना, रूप सज्जा एवं संगीत निर्देशन। कृशन चंदर के उपन्यास दादर पुल के बच्चे, महाश्वेता देवी का उपन्यास बनिया बहू, फणीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास परती परिकथा एवं कहानी तीसरी कसम व रसप्रिया पर आधारित नाटक मारे गए गुलफ़ाम उर्फ़ तीसरी क़सम, भिखारी ठाकुर के जीवन व रचनाकर्म पर आधारित नाटक नटमेठिया, हरिशंकर परसाई की रचना पर आधारित निठल्ले की डायरी सहित मौलिक नाटक भूख और विंडो उर्फ़ खिड़की जो बंद रहती है तथा पलायन का लेखन। देश के विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रंगमंच, फिल्म व अन्य सामाजिक विषयों पर लेखों के प्रकाशन के साथ ही साथ कहानियों और कविताओं का लेखन व प्रकाशन।
Cast and Credits
मंच पर
- सुजीत कुमार – सूत्रधार
- प्रिंस कुमार – लड़का, वाजपेयी, बड़ा साहब, लठधारी, चायवाला
- गुलशन कुमार – लड़का, गणेसी, शिव शंकर, लठधारी, त्रिवेदी जी, चायवाला
- अभिषेक कुमार – निठल्ला
- शिवम – लड़का, साईकलवाला, मास्टर, आचार्य जी, भिखारी
- वरुण शर्मा – जगन्नाथ काका
- श्रेया आर्यन – काकी, औरत, राम भरोसे की पत्नी, देवी, नृत्यांगन
- राहुल कुमार – घुड़सवार, सुपरीटेन्डेंट
- बेटी – रश्मि, नृत्यांगन
- तसव्वर हुसैन – भिखारी, भक्त
मंच परे
- प्रकाश परिकल्पना – विदुषी रत्नम
- वस्त्र परिकल्पना – श्रेया आर्यन और राहुल कुमार
- मंच परिकल्पना – गुलशन और शिवम
- ध्वनि संचालन – अंशु कुमार गुप्ता
- नृत्य एवं गति संचालन – प्रिंस कुमार
- मूल रचना – हरिशंकर परसाई
- सहायक निर्देशक – सन्देश कुमार और सुजीत कुमार
- प्रस्तुति – दस्तक, पटना
- प्रस्तुतकर्ता – हाउस ऑफ़ वेराइटी, पटना
- नाटककार, परिकल्पना एवं निर्देशन – पुंज प्रकाश
About the group:
Dastak was established on 2nd of December 2002 in Patna. Since then plays like Mere Sapne Wapas Karo (story – Sanjay Kundan), Gujarat (a play based on poems by various poets on Gujarat riots), Corruption Zindabad, Haye Sapna Re (based on the world famous novel Don Quixote by Miguel de Cervante), Ram Sajeevan ki Prem Katha (story – Uday Prakash), Ek Ladki Panch Deewane (Writer – Harishankar Parsai), Ek aur Durghatna (Playwright – Dario fo), Patkatha (Poet – Dhumil), Bhookh, The Tenant ( based on Dostroyevsky’s story Rajat Raatein), Ek tha Gadha (Playwright- Sharad Joshi), Ashadh ka Ek din ( Playwright- Mohan Rakesh), Jamun ka ped, Palayan, Nithalle ki Diary, Teesri Kasam etc have been staged in major drama festivals organised in different cities, villages and towns of the country.
The objective of Dastak is to stage plays as well as to refine and train the physical, intellectual and artistic level of the artists and to present contemporary, experimental and meaningful creations to theatre’s lover.
Synopsis
A Nithella is not one who does no work but the one who does not work for his own benefit. In today’s world if one takes a vow to do good to others selflessly then he is considered as a Nithella. Here too there is Nithella who takes a vow to do selfless good for others but either no one wants him to do good for himself or he is unable to do good for anyone even if he wants to. His desire to do good for others made him come across with different different persons, situations and circumstances. Lastly he comes to the conclusion that now-a-days no person can do good to anyone. In this sequence, one after another funny thinking and humorous situations keep arising.
Director’s note :
Nithellapan is a philosophy, which not everyone has the ability to understand. A person generally considers only those work as work which benefits himself in any way and all other things are considered Nithellapan. The belief of today’s world is that anything which doesn’t benefits you personally is useless and whoever adopts this uselessness is actually a Nithella. The presented play is a discussion between greed, profit and indolence. While preparing the presentation of this play, we have tried to adopt as much simplicity as possible in the play so that the satire prevalent in this presentation can be presented before you without any external cover and frills. Here the statement and reading have more importance than the grandeur of the scene and we seek our significance in this statement in an effort to reach you.
About the director:
Punj Prakash is an actor, director, writer, acting coach and lighting designer who has been continuously active in the field of theatre since 1994. He has a Bachelor degree in History Honors from Magadh University and is a Founding member of the theatre group Dastak. He then Graduated from National School of Drama, New Delhi (Session 2004 – 07). He continued Working as a professional actor in National School of Drama Repertory from 2007-12. Till now, he has worked with many eminent actors and theatre artists of the country. He has directed plays – ek aur durghatana, Marnoprant, ek tha gadha, andher nagri, ye admi ye chuhe, mere sapne wapas Karo, gujarat, Haye sapna re, Leela nandlal ki, ram sajeevan ki premkatha, Paul gomra ka scooter, charandas chor, jo raat humne gujari mar ke, patkatha, bhookh, kirayadaar, ek tha gadha, asadh ka ek din, palayan, maare gaye gulfaam aka teesri kasam, nithalle ki diary, etc and has also done light design, stage design and music direction of many plays. He has written – (Krishan Chander’s novel) Dadar pul ke bacche, (Mahasweta Devi’s novel) Baniya Bahu, Mare Gaye Gulfam urf Teesri Kasam, (based on Phanishwarnath Renu’s novel Parati Parikatha, Teesri Kasam and Raspriya), Natamethiya (a drama based on the life and works of Bhikhari Thakur), Bhookh, Window aka Khirki Jo Band Rahti hain, Palayan, Nithalle’s Diary (based on the work of Harishankar Parsai) etc. He is actively Writing and publishing stories and poems along with publication of articles on theatre, film and other social topics in various prestigious newspapers and magazines of the country.
Cast and Credits:
On Stage –
- Sujeet Kumar – Sutradhar
- Prince Kumar – Boy, Vajpayee, Bada Saheb, Lathdhari, Chaiwala
- Gulshan Kumar – Boy, Ganesi, Shiv Shankar, Lathdhari, Trivedi ji, Chaiwala
- Abhishek Kumar – Nithalla
- Shivam – Boy, Cyclist, Master, Acharya Ji, Beggar
- Varun Sharma – Jagannath Kaka
- Shreya Aryan – Aunt, Woman, Ram Bharose’s wife, Goddess, Dancer
- Rahul Kumar – Horse Rider, Superintendent
- Rashmi – Daughter, Dancer
- Tasawwar Hussain – Beggar, Devotee
Off Stage
- Light – Vidushee Ratnam
- Costume – Shreya Aryan and Rahul Kumar
- Stage design – Gulshan and Shivam
- Music Operator – Anshu Kumar Gupta
- Choreography – Prince Kumar
- Story – Harishankar Parsai
- Assistant Directors – Sandesh Kumar and Sujeet Kumar
- Group – Dastak, Patna
- Presentation – House of Variety, Patna
- Playwright, concept and direction – Punj Prakash